शुरुआत करते हैं 1840 के दशक से अल्फ्रेड वालेस और विलियम बेटसन नाम के दो दोस्त इंग्लैंड में थे. दोनों में एक धुन सवार थी. एक प्रश्न का उत्तर खोजने की धुन. वह प्रश्न यह था कि प्रकृति में करोड़ों तरीके के जीव-जंतु हैं, ये सब आते कहां से हैं?
तब की दुनिया अब से थोड़ा अलग थी. सामान्य ज्ञान यही था कि जीव-जंतु सब ईश्वर ने बनाये हैं और धरती पर रख दिए हैं. यह जीव-जंतु हमेशा से अपने अभी दिखने वाले रूप मे ही रहे हैं. पर वालेस और बेटसन इस जवाब से संतुष्ट नहीं थे. दोनों ने निर्णय लिया कि जवाब की खोज में वह दक्षिण अमरीका के महाद्वीप जाएंगे और वहां के जंगलों में प्रकृति के करीब रह कर सवाल का जवाब ढूंढेंगे.
19वीं सदी में विज्ञान को जीवन समर्पित कर पाना अमीरों का खेल था. एक सामान्य, मध्यमवर्गीय इंसान इस दिशा मे अपना जीवन नहीं बिता सकता था. पर वालेस ऐसे नहीं थे- उनके पास कोई खास पुश्तैनी जायदाद नहीं थी.
अपनी वैज्ञानिक खोज के दौरान दुर्लभ चीजें ढूंढ, उन्हें संग्रहालयों या अमीरों को बेच वो अपना विज्ञान का शौक पूरा करते थे. लेकिन दक्षिण अमेरिका का भ्रमण कुछ खास नतीजा नहीं लाया.
दोनों दोस्त ने कुछ साल साथ काम किया और उसके बाद शायद आपसी मतभेद के कारण अलग-अलग काम करने को राजी हो गए. बेटसन वहां एक लंबा अरसा रहे, पर वालेस ने निर्णय लिया और 1852 में वापस इंग्लैंड लौटने के लिए उन्होंने जहाज पकड़ा.
अपने हजारों एकत्रित किए नमूनों के साथ वह वापस आ रहे थे जब उनका जहाज महासागर के बीच में एक आग का शिकार हो गया. जान तो बच गई लेकिन साथ लाई एक-एक चीज तहस-नहस हो गई.
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