ए0 सूफियान एडवोकेट
आजादी की लड़ाई में किसानों ने हंसियों और औजारों को पिघलाकर दरातियॉं बनाई थीं। दरातियों ने आजादी तो दिलाई लेकिन किसान की जिन्दगी दुःस्वप्न ही बनी रही। भूख हड़ताल कर स्वःशासन छीन लेने वाला किसान आजादी के बाद भी भूखा ही रहा। बस परिवर्तन आया कि किसान की कमर बंधी गठूठी गोरे लुटेरों के चंगुल से निकल काले सूदखोरों, लालाओं और मुनीमों के पंजे में आ जकड़ी और किसान बदस्तूर रोता ही रहा, भूखा सोता रहा।
50 के दशक में कटाई कतराई के बाद खलिहानों में फसल की मण्डी के साथ-साथ एक और मण्डी लगती थी, कर्ज वसूली की मण्डी, जहॉं रेशमी अचकन और सफेद धोती में सजा मुनीम बेंत फटकारता हुआ किसान की फसल औने पौने दामों में कर्ज के ब्याज के रूप में वसूल कर लेता था और मूल ज्यों का त्यों रहता था और रहम की भीख मांगते किसान को मिलती थीं, गालियॉं ! यही उनका प्रतिफल था।
तत्कालीन राज्य सरकारों ने किसान को लालाओं, सूदखोरों के चंगुल से निकालने के लिये एक कानून निकाला, जिसे विहंगमतः ‘‘एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग एक्ट'' कहा गया। उ0प्र0 में यह ‘‘उ0प्र0 कृषि उत्पादन मण्डी अधिनियम 1964‘‘ के रूप में मौजूद है। सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र को मण्डी स्थलों में बांट दिया गया। फसल को खलिहान से सूदखोरों की कोठियों, गोदामों तक पहुंचने से रोकने के लिये फसल को सबसे पहले मण्डी लाना अनिवार्य किया गया। फसल की जमाखोरी रोकनेे के लिये खुदरा व्यापारी, होलसेलर, एवं खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को सीधे किसान से फसल खरीदने से प्रतिबंधित किया गया। मण्डी क्षेत्र में कुछ विशिष्ट विक्रेताओं को किसान की फसल खरीदने के लाइसेंस बांटे गये। जो बोली लगाकर किसान की उपज खरीद सकते थे, यही व्यवस्था आज भी उ0प्र0 समेत तमाम राज्यों में कार्य कर रही है।
जाने-अनजाने में इस व्यवस्था को दलालों और बिचौलियों के साये में पलने के लिये छोड़ दिया गया, वेदनाओं की कोख से उपजी यह व्यवस्था, नौकरशाही, लालफीताशाही एवं दलालों के सिंडीकेट की रखैल बनकर रह गई, जो आज किसानों के लिये बतौर नासूर मौजूद हैं। व्यवस्था ने लाइसेंसराज, इंस्पेक्टरराज को जन्म दिया। कमेटी में जमींदारों ने अपनी कुर्सियॉं जमां ली और कमेटी में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कर शामिल होने के इंतजाम को नौकरशाहों से मिल किसी ताबूत में कैद कर किसी गहरे गड्ढे के हवाले किया और मण्डी को कंट्रोल करने वाले बिचौलियों के सरबराह बन बैठे, और बेचारा किसान रोता ही रहा। भूखा सोता रहा।
उ0प्र0 कृषि उत्पादन मण्डी अधिनियम 1964 : प्रमुख प्रावधान
1 . राज्य को भौगोलिक रूप से मण्डियों में विभाजित किया गया।
2. किसानों को अपनी उपज मण्डी में लाना अनिवार्य है।
3. किसान अपनी उपज को मण्डी में लाकर बोली लगाकर ‘लाइसेंसी खरीददारों‘(आढती) को ही बेंच सकता है।
4. मण्डी क्षेत्र में ‘खरीदने-बेंचने, भण्डारण करने, तौल करने, किसी विशिष्ट कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण, करने के लिये मण्डी समिति के निदेशक से लाइसेंस प्राप्त करना होता है।
5 . मण्डी क्षेत्र में बतौर व्यापारी, कमीशन एजेंट, भण्डारक, तौलकर्ता, पल्लेदार के रूप में काम करने के लिये लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य है।
6 . लाइसेंसीकृत आढती के अलावा अन्य किसी भी ‘‘होलसेल मार्केट, खुदरा व्यापारी, होलसेलर, एवं खाद्य प्रसंस्करण इकाइयॉं में सीधे किसान से फसल खरीदने पर प्रतिबंध।
7. प्रत्येक मण्डी क्षेत्र में एक मण्डी कमेटी का गठन।
उ0प्र0 कृषि उत्पादन मण्डी अधिनियम 1964(ए0पी0एम0सी0 एक्ट) : समस्याएं
ए0पी0एम0सी0 एक्ट(उ0प्र0 में मण्डी अधिनियम 1964) में प्रावधान है कि किसान की उपज केवल आढती ही खरीद सकता है। अन्य कोई नहीं। आढती केवल वही व्यक्ति हो सकता है, जिसे किसान की उपज खरीदने के लिये अधिकृत किया गया हो, और जिसके पास उस मण्डी में कोई दुकान या गोदाम हो। गोदाम सीमित होते हैं और लाइसेंस उनसे भी संख्या में कम। आज की स्थिति यह है कि यदि आप आढती बनना चाहें तो आपको एक वृद्ध आढती को ढूंढना पड़ेगा, जो किसी कारण से काम छोड़ रहा हो, या उसके पुत्र आगे काम नहीं करना चाहते हों ताकि वह अपना प्रतिष्ठान और लाइसेंसआपको हस्तांतरित कर सके। जाहिर है, लाइन में आपके आगे अन्य लोग भी होंगे और आपको अधिक निवेश करना होगा।
लाइसेंस और परमिट का अस्तित्व घूसखोरी के काले दौर को जन्म देता है। एक आढती भारी निवेश कर व्यापार शुरू करता है और निवेश की वसूली के लिये शुरू होता है, किसानों का उत्पीड़न। प्रायः देखा गया है कि आढती अर्थात कमीशन एजेण्ट संगठित होकर जानबूझकर फसल की बोली कम से कम लगाते हैं, और औने-पौने दामों में किसानों की फसल खरीद लेते हैं। कई ए0पी0एम0सी0 मण्डियों में तो बोली ही नहीं लगती और बेबस मजबूर अन्नदाता निरीह प्राणी बनकर रह जाता है। कई-कई बार अनाज, सब्जियॉं फल लेकर मण्डी पहुंचने वाले किसानों का प्रतिफल कई हफ्तों बाद दिया जाता है। यदि किसी किसान का तुरंत भुगतान किया भी जाता है तो कुछ राशि यह कहते हुये काट ली जाती है कि हमें अभी दूसरी पार्टी से भुगतान नही मिला है।
बिचौलिया टैक्स/सेस बचाने के लिये किसानो को पक्की रशीद भी नही देता है। जिससे किसान अपनी आमदनी साबित कर बैंक से लोन ले सकें। और किसान वास्तविक खुदरा कीमतों का मुश्किल से 1/4 या 1/3 मूल्य पर फसल को विधि निर्मित दलालों को सौंप घर लौट जाता है। न तो किसान कुछ कह सकता है, न ही किसी और को फसल बेंच सकता है। सबसे अधिक दुर्गति होती है, छोटे और सीमांत किसान की जो आजीविका के लिये फसल के दाम पर निर्भर होता है।
यही वजह है कि अक्सर अपनी मेहनत के अनुरूप उपयुक्त दाम न मिलने से निराश मीलों चलकर आने वाला किसान अपनी उपज को कूड़ाघरों के हवाले कर देता है, और अक्सर किसान परिवारों के खून-पसीने से सींचे गये सेहतमंद टमाटर, सब्जियॉं, गंदगी और कूड़ाघरों की ज़ीनत बनती देखी जाती हैं। जिसके मूल में है, मण्डी अधिनियम 1964 की धारा 9 जिसके अन्तर्गत किसान से उसका ग्राहक चुनने की आजादी छीन ली गई। जिसमें स्पष्ठ उल्लेख है कि- ‘‘किसी क्षेत्र को ‘मण्डी क्षेत्र‘ के रूप में उद्घोषित होने के बाद कोई भी स्थानीय निकाय, या अन्य व्यक्ति, उस मण्डी क्षेत्र के भीतर, कृषि उत्पाद को ‘खरीदने-बेंचने‘, भण्डारण करने, तौल करने, किसी विशिष्ट कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण, ‘‘करने, या करते रहने, अथवा करना शुरू करने‘‘ के लिये अनुमन्य नहीं होगा, मण्डी समिति से लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति के अलावा‘‘।
किसान आढती के अलावा किसी को फसल नहीं बेंच सकता। अच्छे दामों में खरीदने के इच्छुक चाहकर सीधे किसान से फसल नहीं खरीद सकते।आर्थिक सर्वेक्षण 2015-2016 में कहा गया कि वर्तमान भारतीय कृषि, एक तरह से अपनी पिछली सफलताओ से पीड़ित है। पिछली सफलताओं विशेषकर हरित क्रांति की और यही किसान की बदहाली का मुख्य कारण है।
किसान आढती के अलावा किसी को फसल नहीं बेंच सकता। अच्छे दामों में खरीदने के इच्छुक चाहकर सीधे किसान से फसल नहीं खरीद सकते।आर्थिक सर्वेक्षण 2015-2016 में कहा गया कि वर्तमान भारतीय कृषि, एक तरह से अपनी पिछली सफलताओ से पीड़ित है। पिछली सफलताओं विशेषकर हरित क्रांति की और यही किसान की बदहाली का मुख्य कारण है।
हरित का्रंति के उन्नत बीजों और रासायनिक खादों ने उत्पादन तो चौगुना कर दिया। लेकिन उपज को सुरक्षित-संरक्षित रखने का तंत्र विकसित नही कर पाये। देश के 13 करोड़ किसान परिवारों की मेहनत से प्रतिवर्ष उत्पादन में 5-7 प्रतिशत इजाफा हो रहा है। लेकिन उचित परिवहन और कोल्ड स्टोरेज न होने से 20-25 प्रतिशत उत्पादन बर्बाद हो जाता है। यह बर्बादी छोटे और सीमान्त किसानो के घर तबाही लेकर आती है। क्योंकि सुविधाओं संसाधन से महरूम छोटे किसान ही इस उपज की बर्बादी का शिकार बनते है।इस बर्बादी में सबसे अधिक हिस्सा शीघ्र नष्ट होने वाले ,खाद्य पदार्था फूल-फल सब्जियों का होता है। सीजन में एकदम उत्पादन होने से भाव गिर जाते है। उपज को सुरक्षित रखने का जरिया न होने पर किसान के सामने फसल को कूड़े के भाव आढ़ती को बेंच देने के सिवा कोई रास्ता नही होता, यहॉ से शुरू होता है, जमाखोरी का काला खेल। बड़े खिलाड़ी औने-पौने दामों में खरीदे गये इस उपज को सही समय पर बेंच कर मोटा मुनाफा कमाते है। और किसान भूखा ही रहता है। इस किसान उत्पीड़न तंत्र को खत्म करने के लिये इस ‘मिडिलमैन‘ को खत्म करने की शदीद आवश्यकता है। किसानों को अपनी उपज का ग्राहक चुनने देने की आजादी देने की आवश्यकता है। बाजार में कृषि उपज की मार्केटिंग में कम्पटीशन बढ़ाने की आवश्यकता है। कोल्ड स्टोर का निर्माण करने की आवश्यकता है।
समस्या का समाधान : उ0प्र0 कृषि उत्पादन मण्डी अधिनियम 1964(ए0पी0एम0सी0एक्ट) का विकल्प
‘‘मॉडल ए0पी0एम0सी0‘‘
दशकों तक अपनी दुर्दशा पर ऑसू बहाते किसान की दशा देख अचानक सन् 2003 में कृषि मंत्रालय जागा और एक नया मॉडल ए0पी0एम0सी0 एक्ट का ड्राफ्ट तैयार किया गया। कृषि राज्य का विषय हाने के कारण केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने सभी राज्यों से मॉडल ए0पी0एम0सी0 एक्ट लागू करने की सिफारिश की। लेकिन बिचौलियो एवं पूंजीपतियो की लॉबी ने इस आह्वान को कितना सफल होने दिया, यह अनुसंधान का विषय है। मॉडल ए0पी0एम0सी0 में पुराने ए0पी0एम0सी0 एक्ट की समस्याओं को दूर करने का भरसक प्रयास किया गया है। यह किसानो का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा, कि भारतवर्ष में किसी भी राज्य में मॉडल ए0पी0एम0सी0एक्ट को अमलीजामा पहनाना तो दूर, अपनी नीतिगत दस्तावेजों में भी जगह नही दी। केवल 16 राज्यों ने मॉडल ए0पी0एम0सी0 के कुछ हिस्सों को लागू किया है। वह भी हिचकिचाते हुए।
मॉडल ए0पी0एम0सी0 एक्ट(भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित) : प्रमुख प्रावधान
1. किसान को फसल मण्डी में लाना अनिवार्य नहीं, वह जिसे भी, जिस प्रकार चाहे अपनी फसल बेंच सकता है।2. ‘‘होलसेल मार्केट, खुदरा व्यापारी, होलसेलर, एवं खाद्य प्रसंस्करण इकाइयॉं, सीधे किसान से कृषि उपज खरीद सकती हैं।
3. मण्डी के एकाधिकार को खत्म करते हुए ‘‘गैर सरकारी मण्डियों, प्रत्यक्ष खरीद केन्द्र(डाइरेक्ट परचेज़ सेन्टर), किसान बाजार‘‘ खोलने की अनुमति देने का प्रावधान।
4. कृषि बाजार, कोल्ड स्टोरेज, पोस्ट हार्वेस्टिंग मार्केटिंग, प्री-कूलिंग फैसिलिटीज, पैक हाउसेज़ आदि के नियमन एवं स्थापना हेतु पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के उपयोग की रणनीति।
5. कॉट्रैक्ट फार्मिंग के रेगुलेशन के लिये एक अलग चैप्टर में प्रावधान
6. किसी भी संव्यवहार में कमीशन एजेण्ट का पूर्ण रूप से खात्मा।
7. ए0पी0एम0सी0 कमेटियों को जिम्मेदारी दी गई कि-
(क). वे किसानों को उसी दिन पेमेंट दिलाना सुनिश्चित करें।
(ख). मण्डी में बिकने के लिये आने वाली और बेची गई उपज का रिकॉर्ड छापना।
(घ). मण्डी क्षेत्र में प्राइसिंग सिस्टम में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।मॉडल ए0पी0एम0सी0 एक्ट के प्रावधानाेें प्रमुख अनुमानित प्रभाव
1. मिडिल मैन, कमीशन एजेंट का खात्मा
मॉडल ए0पी0एम0सी0 किसानो की आय चूस रहे मिडिल मैन को खत्म करने को एकदम प्रतिबद्ध दिखता है। मॉडल ए0पी0एम0सी0 ने आजादी दी कि किसान जिसे चाहे उसे अपनी उपज बेंच सकता है। और तो और उसे अपनी उपज को मण्डी लाने की भी आवश्यकता नहीं है। खाद्य प्रसंस्करण इकाइयॉं, निर्यातक, ग्रेडर्स आदि को किसानो से सीधे फसल खरीद सकने की आजादी दी गयी। जिससे अब किसान सीधे उपयोगकर्ताओं को फसल बेंच सकता है। और इस एजेंट को जाने वाला रूपया किसान की जेब में जाता और किसान अच्छा मुनाफा कमा सकता है। फसल व्यापार में मण्डी के एकाधिकार को खत्म करते हुये गैर-सरकारी बाजार, प्रत्यक्ष खरीद केन्द्र(डाइरेक्ट परचेज़ सेन्टर) ‘‘किसान बाजारो‘‘ को फसलो के व्यापार करने की अनुमति दी गई। जिससे किसान बिचौलियों के दंश से मुक्त हो सकते हैं। कमीशन एजेंट के अस्तित्व का खात्मा घोषित किया गया। लेकिन भला हो राजनेताओं का जो किसान को सिर्फ किसान की परिभाषा के भीतर सीमित रखने को उद्य्रत रहे उन्हें कभी किसान की उम्मीदेंं उसके सपने और खुशहाली नजर नही आई और उ0प्र0 समेत तमाम राज्यों में इसे कभी लागू नही किया जा सका।
2. तंत्र के विकास में अहम साझेदारी : पी0पी0पी0
हरित क्रांति के आलोक में जिस तेजी से उत्पादन बढ़ा उसी तीव्रता से उपज को सही समय तक संरक्षित रखने के लिये तंत्र का विकास नही हो पाया। नई मण्डियो के विकास का खाका फाइलों में ही दबा रह गया। इस मेज से उस मेज तक गश्त करना ही उनकी नियति बनी रही। कोल्ड स्टोरेज और पोस्ट हार्वेस्टिंग हैण्डलिंग प्री-कूलिंग फैसिलिटीज पैक हाउसेस छोटे और सीमान्त किसानो के लिये अनसुने शब्द है। शायद इनकी वजह सरकार का कृषि में कम निवेश है। यदि हम एशिया में तुलना करें तो चीन 63 प्रतिशत कृषि पर खर्च करता है, बांग्लादेश 38 प्रतिशत, वही भारत का खर्च मात्र 31 प्रतिशत है। उसमें से भी अधिकांश धन कर्जमाफी बिजली बिल उन्मोचन जैसे मदों में खर्च हो जाता है और बुनियादी सुविधायें उपेक्षित ही रहती है। इन समस्याओं से किसान को उबारने के लिये मॉडल ए0पी0एम0सी0 में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का उपयोग करने की रणनीति बनाई गई है। तंत्र के विकास के लिये पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मील का पत्थर साबित हो सकती है। मॉडल ए0पी0एम0सी0 में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का प्रावधान सुनहरे कल की ओर बढ़ता कदम है। कृषि उत्पादों के विपणन क्षेत्र में पी0पी0पी0 का उपयोग का्रंति ला सकता है। लेकिन कब? पता नहीं!
3. कॉट्रैक्ट फार्मिंग
मॉडल ए0पी0एम0सी0 मे कांट्रैक्ट फार्मिंग को रेगुलेट करने के लिये एक पूरा अलग खण्ड है। जब खरीददार खेती से पहले है। कृषक से कुछ शर्तां के साथ उसकी उपज को निश्चित दाम पर खरीदने की संविदा करता है, तो इसे कांट्रैक्ट फार्मिंग कहते हैं। प्रायः शर्ते खेती करने के तरीके पेस्टसाइड्स एवं विशिष्ट बीजों के उपयोग सम्बन्धी होता है। फसल बोने से पहले ही उपज का दाम लिखा-पढ़ी में निर्धारित हो जाने से किसान सुकून से खेती करता है। पंजाब,कर्नाटका, मध्य प्रदेश, हिमांचल महाराष्ट्र के कुछ इलाके इसका सशक्त उदाहरण है। मॉडल ए0पी0एम0सी0 एक्ट को प्राइवेट खिलाड़ियों के अनुकूल बनाकर राहत दी जा सकती है। उपज को पूर्णतया प्राइवेट सेक्टर के नियंत्रण में जाने से रोकने के लिये प्रत्येक प्रदेश में कुछ प्रतिशत खेती पर कांट्रैक्ट फार्मिंग की सीमा निर्धारित की जानी चाहिए।
4. कृषि उद्यमिता
मौजूदा बाजारवादी उपभोक्तावादी दौर में कृषक को कृषि उद्यमी के तौर पर विकसित किया जाना समय की मांग है। जिसे स्वीकार कर किसानों के साथ साथ सरकार को भी सकारात्मक कार्यवाही अमल में लाना चाहिये। उल्लेखनीय है कि कृषि उत्पाद के बाजारीकरण में एक द्वितीय श्रेणी का बिचौलिया उभर कर सामने आ रहा है। जो किसानों से औने-पौने दामों पर खरीदे गये उपज को थोड़ा सा प्रसंस्करित कर दुगुना लाभ कमा रहा है। चने से बेसन, सत्तू बनाना, टमाटर से प्यूरी और कच्चे आम से अचार तैयार करने वाला यह बिचौलिया वर्ग मध्यम आय वर्गीय है, जिनसे आज नही ंतो कल कृषकों को निपटना ही पड़ेगा। ऐसी परिस्थिति में आवश्यक है कि किसानों को उद्यमिता की व्यापक जानकारी और प्रशिक्षण उन्हीं के क्षेत्र में आकर दिलाया जाये। पंचायत स्तर पर नवीन कृषि विधियों, नवीन बीजों एवं मशीनों की जानकारी दी जाये एवं प्रत्येक विकासखण्ड में मशीन बैंकों की स्थापना की जाये। जिसके लिये सरकार को नौजवानों को कृषि, उद्यमिता शिक्षण एवं प्रशिक्षण में तैयार कर पंचायत स्तर पर किसानों को उद्यमिता एवं विपणन का प्रशिक्षण दिया जाये। कृषकों में जागरूकता का अभाव एक बड़ी समस्या है। जिसे इसी नेटवर्क द्वारा खत्म किया जा सकता है।
''नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन'' ने अपनी 90वें राउण्ड के सर्वेक्षण में पाया कि 6 फीसदी किसान ही फसल को वास्तविक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेंच पाते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार भारतवर्ष में केवल 24 प्रतिशत परिवार अपनी उगाई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के प्रति जागरूक होते हैं।
''नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन'' ने अपनी 90वें राउण्ड के सर्वेक्षण में पाया कि 6 फीसदी किसान ही फसल को वास्तविक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेंच पाते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार भारतवर्ष में केवल 24 प्रतिशत परिवार अपनी उगाई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के प्रति जागरूक होते हैं।
इस प्रकार अंदाजा लगाया जा सकता है कि कृषि उद्यमिता, पोस्ट हार्वेंस्टिंग मार्केटिंग एवं नवीन खाद बीज के प्रति किसानों की जागरूकता का क्या आलम है। इस जागरूकता के लिये पंचायत स्तर पर प्रशिक्षकों के नेटवर्क की आवश्यकता है। यही प्रशिक्षक किसानों को माइक्रो इरीगेशन जैसी नवीन तकनीकों से परिचित करवायेंगे, एवं पोस्ट हार्वेंस्टिंग, हैण्डलिंग में किसानों को दक्ष बनायेंगे। जिससे किसान बर्बादी से तरक्की की ओर यात्रा शुरू कर सकेगा। खेती फायदे का सौदा बन जायेगी और आज खेती को छोड़कर भाग रहा युवा वर्ग पुनः खेती से जुड़ जायेगा। बेरोजगारी कम होगी और तब किसान कर्जमाफी से कर्जमुक्ति की ओर यात्रा प्रारम्भ करेगा। खेती के उद्यमिता एवं विपणन में आमूल-चूल परिवर्तन से देश की अर्थव्यवस्था की रीढ एग्रीकल्चर सेक्टर को डूबने से बचाया जा सकता है, वरना वह दिन दूर नहीं जब खेती बूढों का व्यवसाय बनकर रह जायेगी।
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