पास्टर जगराम सिंह
घाटमपुर कस्बे में रविवार को शास्त्री नगर के महर्षि वाल्मीकि पार्क में वाल्मिकी जयंती बड़े धूमधाम से मनाई गई । वाल्मीकि समाज के लोगों ने कस्बा पालिका अध्यक्ष मुख्य अतिथि श्री संजय सचान जी को चादी का मुकुट पहनाकर सम्मानित किया गया एवम् संजय बाल्मीकि जी को सप्रेम सील्ड भी भेंट किया। और पालिका अध्यक्ष श्री संजय सचान जी लोगों को महर्षि वाल्मीकि जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वाल्मीकि जी प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणीमें प्रमुख स्थान प्राप्त करते हैं. इन्होंने संस्कृत मे महान ग्रंथ रामायण की रचना कि थी ।इनके द्वारा रचित रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाती है।. हिंदु धर्म की महान कृति रामायण महाकाव्य श्रीराम के जीवन और उनसे संबंधित घटनाओं पर आधारित है।. जो जीवन के विभिन्न कर्तव्यों से परिचित करवाता है |
‘रामायण’ के रचयिता के रूप में वाल्मीकि जी की प्रसिद्धि है.। एक बार ध्यान में बैठे हुए इनके शरीर को दीमकों ने अपना ढूह (बाँबी) बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये दीमक-ढूह से जिसे वाल्मीकि कहते हैं, बाहर निकले तो इन्हें वाल्मीकि कहा जाने लगा |
महर्षि वाल्मीकी का जीवन |
महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु दस्युकर्म करते थे एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि तुम यह निम्न कार्य किस लिये करते हो, इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिये. इस पर नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होगें यह जानकर वह स्तब्ध रह जाते है |
नारदमुनि ने कहा कि हे रत्नाकर यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिये यह पाप करते हो इस बात को सुनकर उन्होंने नारद के चरण पकड़ लिए और डाकू का जीवन छोड़कर तपस्या में लीन हो गए और जब नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया तो उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह राम-नाम का उच्चारण नहीं कर पाते तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिये कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गया और निरन्तर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए |
महर्षि वाल्मीकि जयंती महोत्सव |
देश भर में महर्षि बाल्मीकि की जयंती को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर शोभा यात्राओं का आयोजन भी होता है.महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद मार्ग पर चलने की राह दिखाई |
इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिर में पूजा अर्चना भी की जाती है तथा शोभा यात्रा के दौरान मार्ग में जगह-जगह लोगों इसमें बडे़ उत्साह के साथ भाग लेते हैं. झांकियों के आगे उत्साही युवक झूम-झूम कर महर्षि वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं. इस अवसर पर उनके जीवन पर आधारित झाकियां निकाली जाती हैं व राम भजन होता है. अध्यक्ष जी व समस्त लोकों ने महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए महर्षि वाल्मीकि जयंती पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करके उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए ।कार्यक्रम में मुख्य रूप से विजय कुमार वाल्मीकि पूर्व सभासद, वेषनारायन जी, संतोष कुमार,सुनील कुमार ,सर्वेश सोनकर,राजू भारती मवई,सुनील बक्सी, राकेश कुमार अशोक, जगन्नाथ संखवार, तारा चन्द व समस्त वाल्मीकि समाज के लोग सामिल रहे।
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