घाटमपुर/ विपिन गुप्ता की रिपोर्ट
दीपावली के दूसरे दिन भैया दूज के दिन ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली दिवारी परंपरा के बीच एक हैरान करने वाली कहानी सामने बाहर निकल कर आ रही है. जहां कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में दिवारी लोक नृत्य के एक हिस्से के तहत बेजुबान जानवर को रस्सी से बांधकर खींचकर गाय से मरवाने एवं लाठी से पीट-पीटकर हत्या किए जाने की परंपरा रही है.
जो कि इस आधुनिक युग में आज भी जारी है.सोचने वाली बात है कि जिन गांव में यह परंपरा होती है वहां पूर्वजों द्वारा परंपरा होने का ढोल पीटा जाता है और जिम्मेदार आंखें बंद किए रहते हैं. बताते चलें भैया दूज के अवसर पर कई गांव में कई दिवसीय दीवारी लोकनृत्य होने के चलते मेला जैसा रूप दिखाई देता है. वही उसी मेले में एक निरीह पशु को रस्सियों से बांधकर उसे खींचकर लाठियों से पीट-पीटकर बेरहमी से जीवित ही सरेआम हत्या की जाएगी और ऐसा करने वाले अपने पूर्वजों द्वारा जारी परंपरा होने का ढोल पीटते सुने भी जायेगे.
अफसोस की बात यह है यह घटनाक्रम तहसील क्षेत्र के विभिन्न गांव में भैया दूज के दिन देखने को मिलता है. जहां निरीह पशु को रस्सी से खींचकर और लाठी से पीट-पीटकर मार दिया जाता है।.
क्यों मनाई जाती हैं ग्रामीणो के बीच यह परंपरा
ग्रामीणों से बात करने में पता चला कि यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है. जहां जब इंद्र का अहंकार नष्ट करने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था तो बाढ़ एवं बारिश से बचने के लिए ग्रामीण और पशु गोवर्धन पर्वत के नीचे खड़े हुए थे. खड़े लोगों के बीच कंस द्वारा भेजा गया एक राक्षस भी सूअर के रूप में साथ में था. जो कि ग्वालो एवं गायों को बार-बार मार रहा था.
वह राक्षस सूअर के रूप में उस पर्वत के नीचे था. यह भगवान कृष्ण जान गए जिसके बाद कृष्ण के आदेश पर गायों द्वारा उस सूअर रूपी राक्षस का वध किया गया था. तब से यह परंपरा लगातार चली आ रही है. जो कि भैया दूज में लगने वाले दीवारी मेले में ग्रामीणों द्वारा की जाती है।.
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