- पतारी गाँव का जानवरों का अस्पताल बना भूत बंगला
- दरवाजेखिड़कियां उखाड़ ले गए अराजक तत्व
- छह महीनों में महंगी कारों से मुआयना करने आते हैं डाक्टर
- झोलाछापों की शरण में जाना ग्रामीण की मजबूरी
घाटमपुर। सरकार जहां गौ संरक्षण एवं पशु संवर्धन का अभियान चला रही है। गाँव गाँव गौशाला स्थापित करने, अन्ना जानवरों को ढूंढ ढूंढ कर उन्हें संरक्षण भोजन और चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराने की बात हो रही है। वहीँ घाटमपुर के पतारी ग्राम स्थित पशुधन विकास केंद्र या आसान शब्दों मे कहे तो जानवरों का अस्पताल भू बंगला बना हुआ है ।
बदहाली का आलम यह है कि अस्पताल की बाउंडरी टूटी हुई है। पूरे परिसर में दो दो हाथ की घास उगी है और पाँव रखने की जगह नहीं है। परिसर में बने सभी कमरों में लगे ताले वर्षों से जंग खा रहे हैं मानो सदियों तक बंद रहने के लिए ही बने हों। परिसर के स्टोर का दरवाजा में सांकल ही नही है और फार्मासिस्ट का कमरा मानो कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया। पूरे परिसर को गाँव के अराजक तत्वों शराबियों जुआरियों ने अपनी ऐशगाह बना रखी है। ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने बरसों से इस अस्पताल का ताला खुलते नहीं देखा है। जबकि पशुधन अधिकारी घर में बैठकर सरकारी तनख्वाह हजम कर रहे हैं ।
ग्रामीणों के अनुसार जानवरों के बीमार होने पर उन्हें प्राइवेट झोलाछाप डाक्टरों की शरण में जाना पड़ता है। जिससे अक्सर तमाम जानवर काल के गाल में समा जाते हैं। और उनकी कोई सुनने वाला ही नही है। नियमानुसार पशु संवर्धन का नियमित कार्य केंद्र पर होना चाहिए परंतु आलम यह है कि अस्पताल की दीवारों का रंग रोगन न होने से पूरे अस्पताल में कहीं पता नहीं चलता की यह क्या है, न ही कहीं नामो निशान मौजूद है, न ही अस्पताल का नाम । गौ संवर्धन के लिए कोई भी व्यवस्था अस्पताल में नजर नहीं आती। पूरे परिसर पेय जल की उपलब्धता के लिए इंडिया मार्का हैण्ड पंप लगाया गया था। परंतु देख रेख के अभाव में वोह भी जंग खा कर गल कर ख़त्म हो गया। और उसके हैंडल आदि भी अराजक तत्व उखाड़ कर ले गए। ग्रामीणों के अनुसार अस्पताल के डॉक्टर साल छः महीने में एक बार अपनी महंगी कार से आते हैं और देख कर चले जाते हैं। बात करने पर उनके बोलों से प्रतीत होता है कि मानो उनका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता है। इस अवसर पर डॉक्टर साहब से फोन से संपर्क करने पर संपर्क नहीं हो सका
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